तू कभी मूड में आके मुझको चूमा करती
तेरे होंठों की मैं हिदत से देहक सा जाता
रात को जब तू निदों के सफर में जाती
मरमरी हाथ का एक तकिया बनाया करती
मैं तेरे कान से लग कर कई बातें करता
तेरी ज़ुल्फो को तेरे गाल को छेड़ा करता
कुछ नहीं तो यही बेनाम सा बंधन होता
काश के मैं तेरे हसीं हाथ का कंगन होता
तू कभी मूड में आके मुझको चूमा करती
तेरे होंठों की मैं हिदत से देहक सा जाता
रात को जब तू निदों के सफर में जाती
मरमरी हाथ का एक तकिया बनाया करती
मैं तेरे कान से लग कर कई बातें करता
तेरी ज़ुल्फो को तेरे गाल को छेड़ा करता
कुछ नहीं तो यही बेनाम सा बंधन होता
काश के मैं तेरे हसीं हाथ का कंगन होता