कर कुछ मेरा भी इलाज
ऐ हकीम-ए-मोहब्बत…
जिस दिन याद आती है उसकी..
सोया नहीँ जाता.!!
कर कुछ मेरा भी इलाज
ऐ हकीम-ए-मोहब्बत…
जिस दिन याद आती है उसकी..
सोया नहीँ जाता.!!
मै रात भर सोचता मगर फैंसला न कर सका,
तू याद आ रही है या मैं याद कर रहा हूँ.
खर्च जितना भी करुं बढ़ती जाती है
ये यादे तेरी अजीब दौलत है…
मेरे अहसानों का कर्ज़ तुम यूँ चुका देना,
कभी याद करके अकेले में मुस्कुरा देना,
खुदा भी आखिर पूछेगा मुजसे..
मुजे पांच वक़्त और उसे हर वक़्त..???
मुझे मालूम है ऐसा कभी मुमकिन ही नहीं,
फ़िर भी हसरत रहती है कि तुम याद करोगे…
कौन कहता है उसकी याद से बे-खबर हूँ मैं,
मेरी आंखो से पूछ ले मेरी रात कैसे गुजरती है…
तुम्हारी याद जैसे किसी ग़रीब की गरीबी,,
कमबख्त बढ़ती ही चली जा रही है…
कुछ मीठी सी ठंडक है आज इन हवाओं में…!
शायद… तेरी यादों से भरा दराज़…. खुला रह गया है…!!
हम उन दिनों अमीर थे,
जब तुम करीब थे ……