Chandan Das Ghazal – कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई


कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला
रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई

दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा ना लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे भी शिकायत ना हुई

वक्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई

Bashir Badr Ghazal – कभी तो आसमा से चाँद उतरे जाम हो जाए

कभी तो आसमा से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की एक खूबसूरत शाम हो जाये

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए

मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए

अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए

समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए

मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए

Bashir Badr Ghazal – पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है

पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है
इस में तेरी ज़ुल्फ़ों की बे-रब्त कहानी है

एक ज़हन-ए-परेशाँ में वो फूल सा चेहरा है
पत्थर की हिफ़ाज़त में शीशे की जवानी है

क्यों चांदनी रातों में दरिया पे नहाते हो
सोये हुए पानी में क्या आग लगानी है

इस हौसला-ए-दिल पर हम ने भी कफ़न पहना
हँस कर कोई पूछेगा क्या जान गवानी है

रोने का असर दिल पर रह रह के बदलता है
आँसू कभी शीशा है आँसू कभी पानी है

ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
तितली की कहानी है फूलों की ज़बानी है

Bashir Badr Ghazal – ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे

ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे
ज़िन्दगी तेरे आस पास रहे

चाँद इन बदलियों से निकलेगा
कोई आयेगा दिल को आस रहे

हम मुहब्बत के फूल हैं शायद
कोई काँटा भी आस पास रहे

मेरे सीने में इस तरह बस जा
मेरी सांसों में तेरी बास रहे

आज हम सब के साथ ख़ूब हँसे
और फिर देर तक उदास रहे

Bashir Badr Ghazal – वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है


वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है

उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिये बनाया है

महक रही है ज़मीं चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है

Bashir Badr Ghazal – न जी भर के देखा न कुछ बात की

न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

उजालों की परियाँ नहाने लगीं
नदी गुनगुनाई ख़यालात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की

सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की

मुक़द्दर मेरे चश्म-ए-पुर’अब का
बरसती हुई रात बरसात की

Bashir Badr Ghazal – पास रहकर, जुदा सी लगती है

पास रहकर, जुदा सी लगती है ,
जिंदगी बे, वफा सी लगती है…2

मै तुम्हारे, बगैर भी जी लूँ ,
ये दुआ बद दुआ, सी लगती है

नाम उसका, लिखा है आँखों में,
आसुओं की, ख़ता, सी लगती है

वो भी इश, तरफ से गुज़रा है ,
ये ज़मी आसमां, सी लगती है

प्यार करना, भी जुर्म है शायद ,
आज दुनिया, खफ़ा, सी लगती है

पास रहकर, जुदा, सी लगती है ,
जिंदगी बे, वफा सी लगती है …2