Qateel Shifai Ghazal – Apne Honthon Par Sajana Chahta Hu


अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

कोई आसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोती बनाना चाहता हूँ

थक गया मैं करते करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा हैं सारी बस्ती में अंधेरा
रोशनी को घर जलाना चाहता हूँ

आखरी हिचकी तेरे ज़ानो पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ

Qateel Shifai Ghazal – Vo Dil Hi Kya Tere Milne Ki Jo Dua Na Kare

वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआयें देती है
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
“क़तील” जान से जाये पर इल्तजा न करे

Qateel Shifai Ghazal – Angdai Par Angdai Leti Hai Raat Judai Ki

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की

कौन सियाही घोल रहा था वक़्त के बहते दरिया में
मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की

टूट गये सय्याल नगीने फ़ूट बहे रुख्सारों पर
देखो मेरा साथ न देना बात है यह रूसवाई कि

वस्ल* की रात न जाने क्यूँ इसरार* था उनको जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई* की

उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफुक* में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की

* वस्ल – मिलन
* इसरार – जिद, हठ
* दानाई – बुद्धिमानी
* उफ़ुक़ – क्षितिज

Qateel Shifai Ghazal – Kya Jane Kis Khumar Mein Kis Josh Mein Gira

क्या जाने किस खुमार में किस जोश में गिरा
वो फल शज़र से जो मेरे आगोश में गिरा

कुछ दाएरे से बन गए सतह-ए-ख्याल पर
जब कोई फूल सागर-ए-मय-नोश* में गिरा

बाकी रही न फिर वो सुनहरी लकीर भी
तारा जो टूट कर शब-ए-खामोश* में गिरा

उड़ता रहा तो चाँद से यारा न था मेरा
घाइल हुआ तो वादी-ए-गुल-पोश* में गिरा

बे-आबरू न थी कोई लग्जिश* मेरी क़तील
मैं जब गिरा जहाँ भी गिरा होश में गिरा

* सागर-ए-मय-नोश – शराब पीने का गिलास
* शब-ए-खामोश – रात की खामोशी
* वादी-ए-गुल-पोश – फूलों की घाटी
* लग्जिश – भूल, गलती

Qateel Shifai Ghazal – Log Ab Mujh Ko Tere Naam Se Pehchante Hain


दिल पे आये हुए इलज़ाम पहचानते है
लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते है

आईना-दार-ए-मोहब्बत* हूँ कि अरबाब-ए-वफ़ा*
अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते है

बादा* ओ* जाम भी इक वजह-ए-मुलाक़ात सही
हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम* से पहचानते है

पौ फटे क्यूँ मेरी पलकों से सजाते हो इन्हे
ये सितारे तो मुझे शाम से पहचानते है

* आईना-दार-ए-मोहब्बत – प्यार को दर्शाने वाला
* अरबाब-ए-वफ़ा – निष्ठावान लोग
* बादा – शराब
* ओ – और
* गर्दिश-ए-अय्याम – भाग्य का उलटफेर

Qateel Shifai Ghazal – Dard Se Mera Daaman Bhar De Ya Allah

दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह

मैनें तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
रौशन दिल बेदार नज़र दे या अल्लाह

सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके
सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह

या धरती के ज़ख़्मों पर मरहम रख दे
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह

Qateel Shifai Ghazal – Pyas Vo Dil Ki Bujhane Kabhi Aaya Bhi Nahi

प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं

बेरुखी इस से बड़ी और भला क्या होगी
एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं

रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं

सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने
वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं

तुम तो शायर हो ‘क़तील’ और वो इक आम सा शख्स़
उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं

Qateel Shifai Ghazal – Mujhe Aayi Na Jag Se Laj Main Itna Jor Se Nachi Aaj

मुझे आई ना जग से लाज
मैं इतना ज़ोर से नाची आज,
के घुंघरू टूट गए

कुछ मुझ पे नया जोबन भी था
कुछ प्यार का पागलपन भी था
कभी पलक पलक मेरी तीर बनी
एक जुल्फ मेरी ज़ंजीर बनी
लिया दिल साजन का जीत
वो छेड़े पायलिया ने गीत,
के घुंघरू टूट गए

मैं बसी थी जिसके सपनों में
वो गिनेगा अब मुझे अपनों में
कहती है मेरी हर अंगड़ाई
मैं पिया की नींद चुरा लायी
मैं बन के गई थी चोर
मगर मेरी पायल थी कमज़ोर,
के घुंघरू टूट गए

धरती पे ना मेरे पैर लगे
बिन पिया मुझे सब गैर लगे
मुझे अंग मिले अरमानों के
मुझे पंख मिले परवानों के
जब मिला पिया का गाँव
तो ऐसा लचका मेरा पांव
के घुंघरू टूट गए

Qateel Shifai Ghazal – Yun Chup Rehna Thik Nahi Koi Mithi Baat Karo

यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो
मोर चकोर पपीहा कोयल सब को मात करो

सावन तो मन बगिया से बिन बरसे बीत गया
रस में डूबे नगमे की अब तुम बरसात करो

हिज्र की एक लम्बी मंजिल को जानेवाला हूँ
अपनी यादों के कुछ साये मेरे साथ करो

मैं किरनों की कलियाँ चुनकर सेज बना लूँगा
तुम मुखड़े का चाँद जलाओ रौशन रात करो

प्यार बुरी शय नहीं है लेकिन फिर भी यार “क़तील”
गली-गली तकसीम* न तुम अपने जज़्बात करो

* तकसीम – बाँटना

Qateel Shifai Ghazal – Likh Diya Apne Dar Pe Kisi Ne Is Jagah Pyar Karna Mana Hai


लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को, इसका इज़हार करना मना है

उनकी महफ़िल में जब कोई आये, पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है

जाग उठेंगे तो आहें भरेंगे, हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
सो गये हैं जो फ़ुर्क़त के मारे, उनको बेदार करना मना है

हमने की अर्ज़ ऐ बंदा-परवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो यह हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है

सामने जो खुला है झरोखा, खा न जाना ‘क़तील’ उसका धोखा
अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है