Rahat Indori Ghazal – Log Har Mod Pe Ruk Ruk Ke Sambhalte Kyon Hain


लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

मैं न जुगनू हूँ, दिया हूँ न कोई तारा हूँ
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं

नींद से मेरा त’अल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं

मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं

Rahat Indori Ghazal – Kitni Pee Kaise Kati Raat Mujhe Hosh Nahi

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ कुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुजारी है हयात
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने क्या टूटा है, पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं

Rahat Indori Ghazal – Chhu Gaya Jab Kabhi Khyal Tera

छू गया जब कभी ख्याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा

कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में
और घर देर तक महकता रहा

रात हम मैक़दे में जा निकले
घर का घर शहर मैं भटकता रहा

उसके दिल में तो कोई मैल न था
मैं खुद जाने क्यूँ झिझकता रहा

मुट्ठियाँ मेरी सख्त होती गयी
जितना दमन कोई भटकता रहा

मीर को पढते पढते सोया था
रात भर नींद में सिसकता रहा

Rahat Indori Ghazal – Wafa Ko Aazmana Chahiye Tha

वफ़ा को आज़माना चाहिए था , हमारा दिल दुखाना चाहिए था
आना न आना मेरी मर्ज़ी है , तुमको तो बुलाना चाहिए था

हमारी ख्वाहिश एक घर की थी, उसे सारा ज़माना चाहिए था
मेरी आँखें कहाँ नाम हुई थीं, समुन्दर को बहाना चाहिए था

जहाँ पर पंहुचना मैं चाहता हूँ, वहां पे पंहुच जाना चाहिए था
हमारा ज़ख्म पुराना बहुत है, चरागर भी पुराना चाहिए था

मुझसे पहले वो किसी और की थी, मगर कुछ शायराना चाहिए था
चलो माना ये छोटी बात है, पर तुम्हें सब कुछ बताना चाहिए था

तेरा भी शहर में कोई नहीं था, मुझे भी एक ठिकाना चाहिए था
कि किस को किस तरह से भूलते हैं, तुम्हें मुझको सिखाना चाहिए था

ऐसा लगता है लहू में हमको , कलम को भी डुबाना चाहिए था
अब मेरे साथ रह के तंज़ ना कर , तुझे जाना था जाना चाहिए था

क्या बस मैंने ही की है बेवफाई ,जो भी सच है बताना चाहिए था
मेरी बर्बादी पे वो चाहता है , मुझे भी मुस्कुराना चाहिए था

बस एक तू ही मेरे साथ में है , तुझे भी रूठ जाना चाहिए था
हमारे पास जो ये फन है मियां, हमें इस से कमाना चाहिए था

अब ये ताज किस काम का है, हमें सर को बचाना चाहिए था
उसी को याद रखा उम्र भर कि , जिसको भूल जाना चाहिए था

मुझसे बात भी करनी थी, उसको गले से भी लगाना चाहिए था
उसने प्यार से बुलाया था, हमें मर के भी आना चाहिए था

तुम्हे ‘सतलज ‘ उसे पाने की खातिर, कभी खुद को गवाना चाहिए था !

Rahat Indori Ghazal – Harek Chehre Ko Jakhmon Ka Aaina Na Kaho


हरेक चहरे को ज़ख़्मों का आइना न कहो
ये ज़िंदगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो

न जाने कौन सी मजबूरियों का क़ैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो

तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यों उछाला मुझे
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इसको हादसा न कहो

ये और बात के दुशमन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो

हमारे ऐब हमें ऊँगलियों पे गिनवाओ
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो

मैं वाक़यात की ज़ंजीर का नहीं कायल
मुझे भी अपने गुनाहो का सिलसिला न कहो

ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी हैं “राहत”
हर इक तराशे हुए बुत को देवता न कहो

Rahat Indori Ghazal – Dilon Mein Aag Labon Par Gulab Rakhte Hai

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं

हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं

बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं

ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं

हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं

Rahat Indori Ghazal – Ye Zindagi Sawaal Thi Jawab Mangne Lage

ये ज़िन्दगी सवाल थी जवाब माँगने लगे
फरिश्ते आ के ख़्वाब मेँ हिसाब माँगने लगे

इधर किया करम किसी पे और इधर जता दिया
नमाज़ पढ़के आए और शराब माँगने लगे

सुख़नवरों ने ख़ुद बना दिया सुख़न को एक मज़ाक
ज़रा-सी दाद क्या मिली ख़िताब माँगने लगे

दिखाई जाने क्या दिया है जुगनुओं को ख़्वाब मेँ
खुली है जबसे आँख आफताब माँगने लगे

Rahat Indori Ghazal – Roz Taroon Ko Numaaish Mein Khalal Padta Hai

रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं

उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

Rahat Indori Ghazal – Apne Hone Ka Hum Is Tarah Pata Dete The

अपने होने का हम इस तरह पता देते थे
खाक मुट्ठी में उठाते थे, उड़ा देते थे

बेसमर जान के हम काट चुके हैं जिनको
याद आते हैं के बेचारे हवा देते थे

उसकी महफ़िल में वही सच था वो जो कुछ भी कहे
हम भी गूंगों की तरह हाथ उठा देते थे

अब मेरे हाल पे शर्मिंदा हुये हैं वो बुजुर्ग
जो मुझे फूलने-फलने की दुआ देते थे

अब से पहले के जो क़ातिल थे बहुत अच्छे थे
कत्ल से पहले वो पानी तो पिला देते थे

वो हमें कोसता रहता था जमाने भर में
और हम अपना कोई शेर सुना देते थे

घर की तामीर में हम बरसों रहे हैं पागल
रोज दीवार उठाते थे, गिरा देते थे

हम भी अब झूठ की पेशानी को बोसा देंगे
तुम भी सच बोलने वालों को सज़ा देते थे

Rahat Indori Ghazal – Safar Ki Had Hai Vahan Tak Ke Kuchh Nishan Rahe


सफ़र की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे

ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे

वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे

मुझे ज़मींन की गहराइयों ने दाब लिया
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे

अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है
मगर ये बात हमारे ही दरमियान रहे

मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे

वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे