Daagh Dehlvi Ghazal – Dil Gaya Tum Ne Liya Hum Kya Kare


दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
जानेवाली चीज़ का ग़म क्या करें
पूरे होंगे अपने अरमां किस तरह
शौक़ बेहद वक्त है कम क्या करें
बक्श दें प्यार की गुस्ताख़ियां
दिल ही क़ाबू में नहीं हम क्या करें
तुंद ख़ू है कब सुने वो दिल की बात
ओर भी बरहम को बरहम क्या करें
एक सागर पर है अपनी जिन्दगी
रफ्ता- रफ्ता इस से भी कम क्या करें
कर चुको सब अपनी-अपनी हिकमतें
दम निकलता है ऐ मेरे हमदम क्या करें
दिल ने सीखा शेवा-ए-बेगानगी
ऐसे नामुहिरम को मुहिरम क्या करें
मामला है आज हुस्न-ओ-इश्क़ का
देखिए वो क्या करें हम क्या करें
कह रहे हैं अहल-ए-सिफ़ारिश मुझसे ‘दाग़’
तेरी किस्मत है बुरी हम क्या करें

Daagh Dehlvi Ghazal – Tumhare Khat Mein Naya Ik Salaam Kiska Tha

तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था

न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किसका था

वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं

ये काम किस ने किया है ये काम किसका था

वफ़ा करेंगे निभायेंगे बात मानेंगे

तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किसका था

रहा न दिल में वो बे-दर्द और दर्द रहा

मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किसका था

न पूछ-पाछ थी किसी की न आव-भगत

तुम्हारी बज़्म में कल एहतमाम किसकाथा

हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किये पढ़ा भी नहीं

सुन जो तुम ने बा-दिल वो पयाम किसका था

इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर

जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किसका था

गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें

ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किसका था

हर एक से कहते हैं क्या “दाग़।” बेवफ़ा निकला

ये पूछे इन से कोई वो ग़ुलाम किसका था

Daagh Dehlvi Ghazal – Achchhi Surat Pe Gazab Toot Ke Aana Dil Ka

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का
याद आता है हमें हाय! ज़माना दिल का

तुम भी मुँह चूम लो बेसाख़ता प्यार आ जाए
मैं सुनाऊँ जो कभी दिल से फ़साना दिल का

पूरी मेंहदी भी लगानी नहीं आती अब तक
क्योंकर आया तुझे ग़ैरों से लगाना दिल का

इन हसीनों का लड़कपन ही रहे या अल्लाह
होश आता है तो आता है सताना दिल का

मेरी आग़ोश से क्या ही वो तड़प कर निकले
उनका जाना था इलाही के ये जाना दिल का

दे ख़ुदा और जगह सीना-ओ-पहलू के सिवा
के बुरे वक़्त में होजाए ठिकाना दिल का

उंगलियाँ तार-ए-गरीबाँ में उलझ जाती हैं
सख़्त दुश्वार है हाथों से दबाना दिल का

बेदिली का जो कहा हाल तो फ़रमाते हैं
कर लिया तूने कहीं और ठिकाना दिल का

छोड़ कर उसको तेरी बज़्म से क्योंकर जाऊँ
एक जनाज़े का उठाना है उठाना दिल का

निगहा-ए-यार ने की ख़ाना ख़राबी ऎसी
न ठिकाना है जिगर का न ठिकाना दिल का

बाद मुद्दत के ये ऎ दाग़ समझ में आया
वही दाना है कहा जिसने न माना दिल का

Daagh Dehlvi Ghazal – Aafat Ki Shokhiyan Hai Tumhari Nigaah Mein

आफ़त की शोखियाँ हैं तुम्हारी निगाह में
महशर के फ़ितने खेलते हैं जल्वागाह में

वो दुश्मनी से देखते हैं, देखते तो हैं
मैं शाद हूँ, कि हूँ तो किसी की नीगाह में

आती है बात बात मुझे याद, बार बार
कहता हूँ दौड़ दौड़ के कासिद से राह में

इस तौबा पर है नाज़ मुझे ज़ाहिद इस क़दर
जो टूट कर शरीक हूँ हाले-तबाह में

मुश्ताक़ इस अदा के बहोत दर्दमंद थे
ऐ ‘दाग़’ तुम तो बैठ गए एक आह में

Daagh Dehlvi Ghazal – Gazab Kiya Tere Vade Pe Aitbaar Kiya


ग़ज़ब किया, तेरे वादे पे ऐतबार किया
तमाम रात क़यामत का इन्तज़ार किया
हंसा हंसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया
तसल्लिया मुझे दे-दे के बेकरार किया
हम ऐसे मह्व-ए-नज़ारा न थे जो होश आता
मगर तुम्हारे तग़ाफ़ुल ने होशियार किया
फ़साना-ए-शब-ए-ग़म उन को एक कहानी थी
कुछ ऐतबार किया और कुछ ना-ऐतबार किया
ये किसने जल्वा हमारे सर-ए-मज़ार किया
कि दिल से शोर उठा, हाए! बेक़रार किया
तड़प फिर ऐ दिल-ए-नादां, कि ग़ैर कहते हैं
आख़िर कुछ न बनी, सब्र इख्तियार किया
भुला भुला के जताया है उनको राज़-ए-निहां
छिपा छिपा के मोहब्बत के आशकार किया
तुम्हें तो वादा-ए-दीदार हम से करना था
ये क्या किया कि जहाँ के उम्मीदवार किया
ये दिल को ताब कहाँ है कि हो मालन्देश
उन्हों ने वादा किया हम ने ऐतबार किया
न पूछ दिल की हक़ीकत मगर ये कहते हैं
वो बेक़रार रहे जिसने बेक़रार किया
कुछ आगे दावर-ए-महशर से है उम्मीद मुझे
कुछ आप ने मेरे कहने का ऐतबार किया

Daagh Dehlvi Ghazal – Ajab Apna Haal Hota Jo Visal-A-Yaar Hota

अजब अपना हाल होता ,जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता

न मज़ा है दुश्मनी में, न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता…

ये मज़ा था दिल्लगी का, कि बराबर आग लगती
न तुम्हें क़रार होता न हमें क़रार होता

तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी जिन्दगी का हमें ऐतबार होता……

Daagh Dehlvi Ghazal – Le Chala Jaan Meri Root Ke Jana Tera

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा

अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा
सब ने जाना, जो पता एक ने जाना तेरा

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परीशान रहा करती है
किसके उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है
काम आता है बुरे वक्त में आना तेरा

दाग़ को यूँ वो मिटाते हैं ये फरमाते हैं
तू बदल डाल, हुआ नाम पुराना तेरा

Daagh Dehlvi Ghazal – Shauk Hai Usko Khudnumai Ka

शौक़ है उसको ख़ुदनुमाई का
अब ख़ुदा हाफ़िज़, इस ख़ुदाई का

वस्ल पैग़ाम है जुदाई का
मौत अंजाम आशनाई का

दे दिया रंज इक ख़ुदाई का
सत्यानाश हो जुदाई का

किसी बन्दे को दर्दे-इश्क़ न दे
वास्ता अपनी क़िब्रियाई का

सुलह के बाद वो मज़ा न रहा
रोज़ सामान था लड़ाई का

अपने होते अदू पे आने दें
क्यों इल्ज़ाम बेवफ़ाई का

अश्क़ आँखों में दाग़ है दिल में
ये नतीजा है आशनाई का

हँसी आती है अपने रोने पे
और रोना है जग हँसाई का

उड़ गये होश दाम में फँस कर
क़ैद क्या नाम है रिहाई का

Daagh Dehlvi Ghazal – Dil Ko Kya Ho Gaya Khuda Jane

दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने
क्यों है ऐसा उदास क्या जाने
कह दिया मैं ने हाल-ए-दिल अपना
इस को तुम जानो या ख़ुदा जाने
जानते जानते ही जानेगा
मुझ में क्या है वो अभी क्या जाने
तुम न पाओगे सादा दिल मुझसा
जो तग़ाफ़ुल को भी हया जाने

Daagh Dehlvi Ghazal – Ranj Ki Jab Guftgu Hone Lagi


रंज की जब गुफ्तगू होने लगी
आप से तुम तुम से तू होने लगी

चाहिए पैग़ामबर दोने तरफ़
लुत्फ़ क्या जब दू-ब-दू होने लगी

मेरी रुस्वाई की नौबत आ गई
उनकी शोहरत की क़ू-ब-कू़ होने लगी

नाजि़र बढ़ गई है इस क़दर
आरजू की आरजू होने लगी

अब तो मिल कर देखिए क्या रंग हो
फिर हमारी जुस्तजू होने लगी

‘दाग़’ इतराए हुए फिरते हैं आप
शायद उनकी आबरू होने लगी