क्या खुब लिखा है किसी ने …
“बक्श देता है ‘खुदा’ उनको, … !
जिनकी ‘किस्मत’ ख़राब होती है … !!
वो हरगिज नहीं ‘बक्शे’ जाते है, … !
जिनकी ‘नियत’ खराब होती है… !!”
न मेरा ‘एक’ होगा, न तेरा ‘लाख’ होगा, … !
न ‘तारिफ’ तेरी होगी, न ‘मजाक’ मेरा होगा … !!
गुरुर न कर “शाह-ए-शरीर” का, … !
मेरा भी ‘खाक’ होगा, तेरा भी ‘खाक’ होगा … !!
जिन्दगी भर ‘ब्रांडेड-ब्रांडेड’ करने
वालों … !
याद रखना ‘कफ़न’ का कोई ब्रांड नहीं होता … !!
कोई रो कर ‘दिल बहलाता’ है … !
और कोई हँस कर ‘दर्द’ छुपाता है … !!
क्या करामात है ‘कुदरत’ की, … !
‘ज़िंदा इंसान’ पानी में डूब जाता है और ‘मुर्दा’ तैर के
दिखाता है … !!
‘मौत’ को देखा तो नहीं, पर शायद ‘वो’ बहुत
“खूबसूरत” होगी, … !
“कम्बख़त” जो भी ‘उस’ से मिलता है,
“जीना छोड़ देता है” … !!
‘ग़ज़ब’ की ‘एकता’ देखी “लोगों की ज़माने
में” … !
‘ज़िन्दों’ को “गिराने में” और ‘मुर्दों’ को “उठाने
में” … !!
‘ज़िन्दगी’ में ना ज़ाने कौनसी बात “आख़री”
होगी, … !
ना ज़ाने कौनसी रात “आख़री” होगी ।
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से ना जाने कौनसी “मुलाक़ात” “आख़री होगी” …